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  • Apr 23, 2020
  • 1 min read

জুই হৈ ফুলাৰ যি মন আছিল

বৰষুণ হৈ নমাৰ যি হেঁপাহ আছিল

তগৰৰ সুবাস সনাৰ যি সপোন আছিল

বুকুতে...


গোপনে...


অজানিতে...

বৰষুণ, জুইফুল, সুবাস

অতীত হ'ল

বাউলী বতাহজাকে সৰাপাত এখিলা

উৰুৱাই লৈ গ'ল

এটি ঠিকনা অঘৰী হ'ল।

এটা সপোনৰ মৃত্যু হ'ল।

এটা কবিতাৰ জন্ম হ'ল।।











  • Apr 12, 2020
  • 1 min read

एक ख़याल था मन में,

रहस्यमय,

ढँका, छिपा सा

सुबह जब आंख खुली और

तुम्हारी तरफ देखा

एक ख़याल था मन में

ख़याल था -


मैं खो जाऊँ मौत के आग़ोश में ,

थोड़ी सी देर के लिए

होश आने पर

वापस आ कर

फ़िर जियूँ

मैं यहां बारामदे में बैठी हूँ

खिड़की के बाहर की दुनिया के

अनजान लोगों के कोहराम से परे

क्या कहानियां होंगी उनकी?

मैं हमेशा की तरह खो जाती हूँ

अपने ख़यालो में

सोचती हूँ,

क्या इनमे से कुछ कहानियाँ

मेरी भी हैं?

बारामदे में रखे

सूखे पत्ते,

कुछ हरे हैं, कुछ पीले

बिल्कुल मेरे विचार की तरह

रहस्यमय,

ढँके, छिपे से

-मैं हैरान सी,

पत्तों को ताकते खड़ी रहती हूँ

“क्या होगा

अगर मैं चली जाऊँ

मौत के आग़ोश में,

थोड़ी सी देर के लिए”

होश आनेपर जब

लौट कर जीने आऊँ

तब क्या मेरी ही ज़िंदगी,

मुझे बेवफ़ा समझेगी?

कैसी उलझन है ये

जैसे तुम फिसल रहे हो समय की तरह

और मैं एक दोशाले की तरह तुम्हें

ओढ़ लेने की कोशिश में हूँ

कैसा समय है यह?

ये दिन है, या रात है?

इसमें दुख भी है तो क्यूँ है !!

Thanks for submitting!

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HI! I'M NABANITA

A researcher, science communicator by profession. A sexual harassment survivor, and a mental health advocate. A fighter against social stigmas and gender discrimination. An empathetic listener. A thinker.

This space is to articulate my thoughts and experiences gathered at different stages of my life, which made the 'Me'. 

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