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एक ख़याल था मन में,

रहस्यमय,

ढँका, छिपा सा

सुबह जब आंख खुली और

तुम्हारी तरफ देखा

एक ख़याल था मन में

ख़याल था -


मैं खो जाऊँ मौत के आग़ोश में ,

थोड़ी सी देर के लिए

होश आने पर

वापस आ कर

फ़िर जियूँ

मैं यहां बारामदे में बैठी हूँ

खिड़की के बाहर की दुनिया के

अनजान लोगों के कोहराम से परे

क्या कहानियां होंगी उनकी?

मैं हमेशा की तरह खो जाती हूँ

अपने ख़यालो में

सोचती हूँ,

क्या इनमे से कुछ कहानियाँ

मेरी भी हैं?

बारामदे में रखे

सूखे पत्ते,

कुछ हरे हैं, कुछ पीले

बिल्कुल मेरे विचार की तरह

रहस्यमय,

ढँके, छिपे से

-मैं हैरान सी,

पत्तों को ताकते खड़ी रहती हूँ

“क्या होगा

अगर मैं चली जाऊँ

मौत के आग़ोश में,

थोड़ी सी देर के लिए”

होश आनेपर जब

लौट कर जीने आऊँ

तब क्या मेरी ही ज़िंदगी,

मुझे बेवफ़ा समझेगी?

कैसी उलझन है ये

जैसे तुम फिसल रहे हो समय की तरह

और मैं एक दोशाले की तरह तुम्हें

ओढ़ लेने की कोशिश में हूँ

कैसा समय है यह?

ये दिन है, या रात है?

इसमें दुख भी है तो क्यूँ है !!

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